कैलाश पर्वत, जिसकी ऊँचाई 6,656 मीटर है, को ‘रहस्यमयी पर्वत’ के नाम से जाना जाता है और इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इस पर्वत की चोटी तक पहुंचना असंभव माना जाता है, लेकिन तिब्बती संत मिलारेपा (1052 ई. – 1135 ई.) इस महान कार्य को करने वाले एकमात्र व्यक्ति हैं।
मिलारेपा ने अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए कैलाश पर्वत की यात्रा की थी और गुरु मार्पा जी की आज्ञा में इस व्रत को पूरा किया था। उनकी कहानियों में नरो बोन-चुंग के साथ एक प्रतिस्पर्धा भी शामिल है, जिसमें मिलारेपा ने अपनी असीम धैर्य और आध्यात्मिक शक्ति से विजय प्राप्त की। इस पौराणिक कथा (Story of Milarepa) में मिलारेपा के अद्भुत साहस, साधना और कैलाश पर्वत की रहस्यमयी घटनाओं का वर्णन है।
कैलाश पर्वत: भगवान शिव का निवास स्थान
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कैलाश पर्वत और इसके पास स्थित मानसरोवर को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं, और इसी कारण कोई भी इस पर्वत पर चढ़ने में सफल नहीं हो पाता है। जो भी इस पर्वत पर चढ़ने का प्रयास करता है, उसे अजीबोगरीब शक्तियों का अनुभव होता है।
एक रूसी पर्वतारोही के अनुसार, उसने कई बार अपने दिल की धड़कन को बहुत तेज महसूस किया और थकान का अनुभव किया। यहां तक कि उस समय तेजी से खत्म होने और बाल-नाखुनों की तेजी से बढ़ने की घटनाओं की भी सूचना मिली है, हालांकि अभी तक वैज्ञानिक इन घटनाओं के पीछे के कारणों को समझ नहीं पाए हैं।
Story of Milarepa – मिलारेपा: कैलाश पर्वत पर जाने वाले एकमात्र संत
Story of Milarepa – कैलाश पर्वत की पौराणिक कथाओं में तिब्बती संत मिलारेपा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मिलेरेपा, जिसे पहले कैलाश पर्वत पर चढ़ने वाले व्यक्ति माना जाता था, ने अपनी साधना पूरी करने के लिए इस पर्वत की यात्रा की थी। उन्होंने अपने पूज्य गुरु मारपा जी की छत्रछाया में अध्ययन किया था और अपनी सारी सेवाएं गुरु को समर्पित कर दी थीं।
मिलारेपा की महायात्रा
मीडिया रिपोर्टों और ऐतिहासिक लेखों के अनुसार, मिलारेपा ने 1093 में कैलाश पर्वत पर पश्चिम दिशा से यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात बोन धर्म के प्रचारक नरो बोन-चुंग से हुई। नरो बोन-चुंग ने मिलारेपा के सामने एक चुनौती रखी कि जो पहले शिखर पर पहुंचेगा, वह कैलाश पर्वत पर हावी होगा। मिलारेपा ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और दोनों ने एक साथ पर्वत की यात्रा शुरू कर दी।
नरो बोन-चुंग बिना सीधे आगे बढ़ते जा रहे थे और थोड़ी देर में शिखर के निकट पहुंच वाले थे। मिलेरेपा अभी भी आराम कर रहे थे जब उनके अनुयायियों ने उन्हें बताया कि नरो बोन-चुंग शिखर के निकट हैं और उन्हें तेजी से रुकना चाहिए। मिलारेपा ने तुरंत तेजी से चढ़ना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में शिखर के निकट पहुंच गए। जब नरो बोन-चुंग भी शिखर की ओर बढ़ रहे थे, तभी सूर्योदय की पहली किरण उनके चेहरे पर पड़ी और वे पीछे हट गए। इस बीच, मिलारेपा कैलाश पर्वत के शिखर पर पहुंच गए।
मिलारेपा की विरासत
नरो बोन-चुंग ने अपनी गलती का एहसास किया और मिलेरेपा से माफी मांगी। इस तरह, मिलेरेपा कैलाश पर्वत के शिखर पर पहुंचने वाले पहले और एकमात्र व्यक्ति बने। इसके बाद, मिलारेपा कई वर्षों तक कैलाश पर्वत पर साधना की और फिर अपने गुरु मार्पा जी के पास लौट आए। मार्पा जी ने उन्हें एक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया, जहां उन्होंने अपनी तंत्र विद्या को पूर्ण किया। मिलारेपा की शिक्षा ऋषि मार्पा के गुरु श्री नरोपा जी के आशीर्वाद में पूरी हुई।
अमर संत
कहा जाता है कि मिलारेपा अभी भी जीवित हैं और कैलाश पर्वत की किसी गुफा में तप कर रहे हैं। हालाँकि, इस बारे में सच्चाई क्या है, यह कोई नहीं जानता।
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