भारत के पश्चिमी तट पर स्थित सिद्धि समुदाय अफ्रीकन मूल का है, लेकिन उन्होंने पूरी तरह से भारतीय संस्कृति को अपना लिया है। ये लोग हिंदी और गुजराती भाषाएं बोलते हैं और हिन्दुस्तानी पहनावे में रहते हैं। इतिहास के अनुसार, सिद्धि समुदाय 15वीं या 17वीं सदी में भारत आए थे और अब गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बसे हुए हैं। शक्ल-सूरत से अफ्रीकन दिखाई देने वाले ये लोग अब भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
भारत में अफ्रीकन मूल के लोग: सिद्धि समुदाय की कहानी
भारत का इतिहास कई रहस्यों और घटनाओं से भरा है, जिनमें से एक है अफ्रीकन मूल के लोगों का भारत में बसना। आज हम आपको भारत में रहने वाले सिद्धि समुदाय के बारे में बताएंगे, जो अफ्रीकन मूल के होते हुए भी भारतीय संस्कृति को पूरी तरह अपना चुके हैं।
सिद्धि समुदाय: हब्शी और बादशा के नाम से प्रसिद्ध
सिद्धि समुदाय को हब्शी और बादशा के नामों से भी जाना जाता है। ये लोग अफ्रीकन मूल के हैं, लेकिन इनके भारत में आने का सही समय आज भी विवादित है।
इतिहास की झलक
1931 की जनगणना के अनुसार, इस जनजाति के लोगों को 17वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा कैदी के रूप में लाया गया था। लेकिन, बुजुर्गों के मुताबिक, वे 15वीं सदी में ही मध्य भारत में आ चुके थे। 1981 की जनगणना के अनुसार, सिद्धि जनजाति की जनसंख्या करीब 54,291 थी। वर्तमान में ये लोग गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के पश्चिमी तट पर बसे हुए हैं, जिसमें गुजरात के राजकोट और जूनागढ़ जिले में इनकी मुख्य एकाग्रता है।
भाषा और संस्कृति
सिद्धि समुदाय के लोग मांसाहारी होते हैं और उनकी बोलचाल की भाषा गुजराती और हिंदी है। उनके पहनावे भी हिन्दुस्तानी होते हैं। शक्ल-सूरत से अफ्रीकन दिखाई देने वाले ये लोग अब पूरी तरह से भारतीय हो चुके हैं और भारत की संस्कृति को अपना चुके हैं।
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