भारत की इस पावन भूमि पर माता के बहुत सारे चमत्कारी मंदिर हैं। उनमे से एक ऐसा ही शीतला माता का मंदिर राजस्थान के पाली जिले में मौजूद है। इस जगह पर एक अनोखी परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। शीतला माता के मंदिर में एक घड़ा है जो गहराई और चौड़ाई में लगभग आधा फीट है। साल में दो बार इस घड़े को भक्तों के लिए खोला जाता है।
Sheetla Mata Mandir – Pali Rajasthan
शीतला माता का यह घड़ा वैज्ञानिकों के लिए भी एक अनसुलझी पहेली बन चूका है। करीब 800 वर्षों से यह घड़ा भक्तों के लिए साल में सिर्फ दो बार खुलता है। इस घड़े में लाखों लीटर जल चढ़ाया जा चुका है लेकिन ये आज तक कभी पूरा नहीं भरा है। ऐसा माना जाता है कि इस घड़े में कितना भी जल डाला जाए यह कभी नहीं भरता। कहते है कि इस घड़े का जल एक राक्षस पीता है, जिसके कारण यह पानी से पूरा कभी नहीं भर पाता।
यहाँ के स्थानीय लोगों के अनुसार करीब 800 वर्षों से इस गांव में यह परंपरा चली आ रही है। घड़े के ऊपर से साल में दो बार शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन इस पर रखे पत्थर को हटाया जाता है। इन दोनों दिनों में गांव की महिलाएं कलश भरकर इसमें कई हजार लीटर पानी चढ़ाती हैं लेकिन यह घड़ा कभी नहीं भरता।
आखिर में इस मंदिर का पुजारी माता के चरणों से लगाकर दूध का भोग लगाता है और इस घड़े में डालता है तो यह घड़ा पूरा भर जाता है। उसके बाद पत्थर द्वारा घड़े के मुंह को बंद कर दिया जाता है। शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन इस गांव में मेला भी लगता है।
वैज्ञानिकों ने भी हजारों लीटर पानी पी रहे इस घड़े के रहस्य जानने की बहुत कोशिश की मगर उन्हें भी इसमें कोई सफलता नहीं मिली। कोई भी वैज्ञानिक यह पता नहीं लगा पाया कि घड़े में डाला जा रहा जल कहां जाता है।
मान्यता
ऐसा माना जाता है कि आज से 800 साल पहले गांव में बाबरा नामक राक्षस आया था। गाँव में जब भी किसी ब्राह्मण की बेटी का विवाह होता तो राक्षस उसके दूल्हे को मार दिया करता था। सभी इस राक्षस के आंतक से परेशान हो गए थे। तब ब्राह्मणों ने शीतला माता की तपस्या की और एक दिन माता ने एक ब्राह्मण के सपने में आकर कहा कि जब उसकी बेटी की शादी होगी, वह दिन राक्षस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा। उसी दिन मैं उस नरभक्षी राक्षस का वध कर दूंगी।
उस ब्राम्हण की लड़की के विवाह के समय शीतला माता एक छोटी सी कन्या के रूप में वहां मौजूद थीं और उन्होंने उस राक्षस को अपने घुटनों से दबोचकर मार दिया था। मरते समय उस राक्षस ने मां शीतला से यह वरदान मांगा कि गर्मी के दिनों में उसे प्यास बहुत ज्यादा लगती है, इसलिए साल में केवल दो बार माता के भक्तों के हाथों से उसे पानी पिलाया जाए। जिस पर माता शीतला ने उसकी इस आखिरी इच्छा को पूरा करने का वचन दे दिया। ऐसा कहते हैं कि तब से ही इस घड़े में साल में दो बार पानी भरने की परंपरा चली आ रही है।
शीतला माता के वचन के अनुसार इस चमत्कारी घड़े के दर्शन के लिए इसे साल में दो बार माता के भक्तों के सामने लाया जाता है। यह घड़ा एक पत्थर से ढंका हुआ रहता है। जिसे साल में सिर्फ दो बार शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन ही हटाया जाता है। इन दो दिनों में माता के भक्त कलश भर-भर कर हजारों लीटर पानी इस घड़े में डालते हैं। माता के भक्तों का मानना है कि इस चमत्कारी घड़े में अब तक कई लाख लीटर पानी डाला जा चुका है, लेकिन यह घड़ा है कि भरने का नाम ही नहीं लेता।
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