Kinnar Ki Shaadi – आखिर क्या है किन्नरों की एक रात की शादी का राज
दोस्तों, आप सब ये तो जानते ही है कि किन्नरों की दुनिया बहुत अलग तरह की होती है जिसके बारे में आम लोगों को बहुत कम जानकारी होती है| मगर, क्या आपने जानते है कि आम लोगों की तरह किन्नर किस देवता की पूजा करते हैं| चलिए इसके बारे में जानते है|
Kinnaron Ki Shaadi | इनसे होती है किन्नरों की शादी
भारत के दक्षिण में स्थित तमिलनाडु में अरावन देवता की पूजा की जाती है| इन्हें कई जगहों पर इरावन के नाम से भी जाना जाता है| दक्षिण भारत में अरावन देव को किन्नरों का देवता माना जाता है और वहीँ किन्नरों को अरावनी के नाम से बुलाया जाता है| यहां किन्नर Araavan Devta को अपना आराध्य देव मानकर उनकी उपासना करते है और उनके शीश की पूजा करते है|
महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक अरावन देवता थे और इस युद्ध में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी| सबसे अनोखी बात यह है कि यहां स्थित इस मंदिर के Araavan Devta का विवाह किन्नरों से किया जाता है| साल में एक बार होने वाली Kinnaron Ki Shaadi के अगले दिन ही अरावन देव की मृत्यु हो जाने के साथ ही किन्नरों का वैवाहिक जीवन भी खत्म हो जाता है|
इस जगह मनाया जाता है Kinnaron Ki Shaadi का उत्सव
विल्लुपुरम जिले के कूवगम गांव में अरावन देवता का मुख्य और सबसे प्राचीन मंदिर है| हर साल कूवगम गांव में तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा के दिन 18 दिनों तक चलने वाला उत्सव प्रारम्भ होता है| देश और विदेशों से भी इस उत्सव में किन्नर आते हैं| 16 दिन तक खूब नाच गाना होता है और हंसी खुशी से शादी की तैयारियां की जाती हैं| फिर 17वें दिन पंडित द्वारा एक ख़ास पूजा की जाती है, जिसके पश्चात् Araavan Devta के सामने मंदिर के पंडित भगवान की ओर से किन्नरों के गले में मंगलसूत्र पहनाते है और अरावन की मूर्ति के साथ शादी रचाते है|
18वें दिन सारे कूवगम गांव में अरावन देवता की मूर्ति को घूमाया जाता है और फिर उसका सर काटकर उसे तोड़ दिया जाता है| उसके बाद दुल्हन की तरह सजे किन्नर एक विधवा बनी स्त्री की तरह अपने चेहरे पर किए सारे श्रृंगार को मिटा देते हैं और साथ ही अपना मंगलसूत्र भी तोड़कर सफेद कपड़े पहन लेते हैं और शोक मनाते हुए खूब रोते हैं| 18 वें दिन की इस प्रथा के बाद अरावन उत्सव समाप्त हो जाता है|
महाभारत काल से जुडी है कथा
महाभारत की एक कथा के अनुसार धनुर्धारी अर्जुन को, द्रोपदी से शादी की एक शर्त का उल्लंघन करने की वजह से इंद्रप्रस्थ से निष्कासित कर दिया जाता है और एक साल के लिए तीर्थयात्रा पर भेज दिया जाता है| इंद्रप्रस्थ से निकलने के बाद अर्जुन उत्तर पूर्व भारत की ओर जाते है जहां की उनकी मुलाक़ात उलूपी नामक एक विधवा नाग राजकुमारी से होती है| इन दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है और फिर दोनों विवाह बंधन में बांध जाते है|
विवाह के कुछ समय बाद, राजकुमारी उलूपी एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम अरावन रखा जाता है| पुत्र अरावन के जन्म के बाद अर्जुन, उन दोनों को छोड़कर अपनी आगे की यात्रा की ओर निकल जाते है| अपनी मां के साथ अरावन नागलोक में ही रहता है| जवान होने पर अरावन नागलोक छोड़कर अपने पिता के पास आ जाता है| जिस समय अरावन और पिता अर्जुन की मुलाकात होती है उस समय कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध भी चल रहा होता है| ऐसे में अर्जुन उसे युद्ध करने के लिए रणभूमि में भेज देते है|
इस तरह दी अरावन ने अपनी ही बलि
कुरुक्षेत्र के इस युद्ध में एक वक्त ऐसा आता है जब पांडवो को अपनी जीत के लिए काली माँ के चरणों में स्वेचिछ्क नर बलि हेतु एक राजकुमार की जरुरत पड़ती है| ऐसे में जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता, तो राजकुमार अरावन, इस स्वेच्छिक नर बलि के लिए तैयार हो जाते है| मगर अपने आप को बलि चढ़ने से पहले अरावन अपनी एक शर्त रखते है कि वो अविवाहित नहीं मरना चाहेंगे|
इनकी इस शर्त की वजह से लोग परेशानी में आ जाते है, क्योकि यह जानते हुए कि अगले ही दिन उसकी बेटी विधवा हो जायेगी, इसीलिए कोई भी राजा, अरावन से अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होता है|
ऐसे में पांडवों की जीत की खातिर भगवान श्रीकृष्ण स्वंय को मोहिनी के रूप में बदलकर राजकुमार अरावन से शादी कर लेते है| शादी के अगले ही दिन राजकुमार अरावन खुद अपने हाथों से अपना सर मां काली के चरणों में अर्पित करते है। राजकुमार अरावन की मृत्यु के बाद श्री कृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक उसकी मृत्यु का शोक भी मनाते है|
जिस तरह श्री कृष्ण पुरुष होते हुए भी स्त्री रूप में अरावन से शादी रचाते है ठीक उसी तरह किन्नर, जो की स्त्री रूप में पुरुष माने जाते है, वे भी Araavan Devta से एक रात के लिए शादी रचाते है और उन्हें अपना आराध्य देव भी मानते है|
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