के. आसिफ (फिल्म मुगले-ए-आजम के निर्देशक)
एक कार ड्राइवर से बॉलीवुड कॉमेडियन बने थे मेहमूद
इस फिल्म में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी सीन को दर्शाने के लिए ‘इंडियन आर्मी’ के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था। फिल्म में सलीम और अकबर के बीच हो रहे युद्ध को शूट करने के लिए के. आसिफ ने उस समय के ‘इंडियन डिफेन्स मिनिस्टर’ कृष्णा मेनोन से बकायदा इजाजत ली थी। फिल्म में फ़िल्मायें गए युद्ध के दृश्यों के लिए २००० ऊँट, ४००० घोड़े और ८००० पैदल सैनिकों का हुजूम जुटाने का बेहद मुश्किल काम के. आसिफ ने उस समय किया था। युद्ध के इन दृश्यों को फ़िल्माने के लिए करीब १६ कैमरों का इस्तेमाल किया गया।
फिल्म के सबसे मशहूर गाने ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ की शूटिंग के लिए उस समय १० लाख रुपये खर्च किये गए थे। उस वक्त इतनी कीमत पर दो फिल्में बनकर तैयार हो जाती थी। बता दें कि इस गाने उस समय स्टूडियों में नहीं बल्कि स्टूडियों के बाथरूम में रिकॉर्ड किया था। इस गाने के सेट का निर्माण लाहौर फोर्ट के ‘शीशमहल’ जैसा किया गया था। लंबाई में १५० फ़ीट, चौड़ाई ८० फ़ीट और ३५ ऊंचाई वाले इस सेट को बनाने के लिए जिन शीशों का इस्तेमाल किया गया था वो ‘बेल्जियम’ से मंगवाए गए थे। इस सेट को तैयार में करीब २ साल का वक्त लग गया था।
‘अनारकली’ के किरदार को बुलंद करने के लिए के. आसिफ साहब ने इस फिल्म के लिए २० गाने रिकॉर्ड कराये थे। इनमें से ज्यादातर गाने शूट भी कर लिए गए थे, लेकिन फिल्म की लंबाई बढ़ जाने की वजह से इस फिल्म में केवल १२ गाने ही डाले गए थे।
किसी शीशे की तरह जिगर में उतरने वाले फिल्म के डॉयलोग्स को के. आसिफ शाहब ने उस दौर के चार मशहूर लोगों से लिखवाये थे। इनमें कमाल अमरोही, अमानुल्लाह खान (अभिनेत्री जीनत अमान के पिता), वजाहत मिर्ज़ा और एहसान रिज़वी जैसे मुग़ल इतिहास की भाषा जानने वाले जाकर शामिल थे।
आखिरकार फिल्म बनकर तैयार हुई और इसे ५ अगस्त १९६० को रिलीज़ की गयी। मुंबई के ‘मराठा मंदिर’ में इस फिल्म का प्रीमियर रखा गया था और इस थिएटर को एक मुग़ल महल की तरह सजाया गया था। फिल्म की रिलीज़ के एक दिन पहले जब एडवांस टिकट बुकिंग के लिए थिएटर खुला तो थिएटर के बाहर करीब १ लाख से भी ज्यादा लोग टिकट खरीदने के लिए थिएटर के बाहर इकठ्ठा हुए थे। उस समय किसी फिल्म के टिकट की कीमत डेढ़ रुपये हुआ करती थी वहीं इस फिल्म की टिकट की कीमत १०० रुपये थी। मराठा मंदिर में यह फिल्म करीब ३ साल तक चली थी, जो बॉलीवुड में सबसे ज्यादा दिनों तक एक ही थिएटर में चलने का पहला रिकॉर्ड था।
‘ना पूछिए कहां-कहां खुदा का घर बना गया, जहां वो याद आया वहीँ पर सर झुका दिया, मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ चल दिया, किसी से मैंने क्या दिया और किसी से मैंने क्या लिया’, ये के. आसिफ साहब थे।
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