फिल्म ‘Sholay’ आज भी सदाबहार फिल्मों की सूची में टॉप पर है। फिल्म में जय – वीरू की जोड़ी, बसंती की बड़बड़, गब्बर की हंसी और फिल्म के डायलॉग को कोई भूल ही नहीं सकता। फिल्म के बारे में वैसे तो कई बातें लोगों को मालूम है मगर ये शायद ही लोगों को पता है कि फिल्म के अंत यानी क्लाइमेक्स के साथ छेड़छाड़ हुई थी। फिल्म में जहाँ गब्बर को अंत में पुलिस पकड़ कर ले जाती है, असल में गब्बर को ठाकुर के जरिये मौत के घात उतारा जाता है। जी हाँ, यही फिल्म का पहले क्लाइमेक्स था।
इसी पार्टी में ये तय हुआ कि अब की बार इससे भी चार कदम आगे भारी बजट वाली फिल्म बनायीं जायेगी और यहीं से फिल्म शोले की कहानी का जन्म हुआ। लेखक सलीम-जावेद के साथ मिलकर रमेश सिप्पी घंटो बैठकर शोले फिल्म की कहानी को अंतिम रूप देते रहे। फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार हुई, इसके बाद कलाकारों का चयन किया गया। जिसके पीछे भी अलग कहानी है।
फिल्म की अभिनेत्री हेमा मालिनी भी बसंती के रोल के लिए तैयार नहीं थी। मगर रमेश सिप्पी के मनाने पर वो मान गयी थी। जय के किरदार को लेकर भी काफी माथापच्ची हुई थी। जय के किरदार के लिए पहले शत्रुघ्न सिन्हा के नाम चर्चा जोरों पर थी, लेकिन बाद में अमिताभ बच्चन का नाम फाइनल हुआ।
गब्बर और ठाकुर के किरदारों के लिए खूब चर्चाएं हुई, फिर अंत में शूटिंग बैंगलोर के रामनगरम में शुरू हुई। 2 साल बाद जब फिल्म बनकर रिलीज़ के लिए तैयार हुई तो सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया। दरअसल, फिल्म के अंत में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को धक्का देता है जिससे गब्बर एक खम्बे पर लगी मोटी कील से जाकर भीड़ जाता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है।
सेंसर बोर्ड ने 20 जुलाई 1975 के दिन क़ानून का हवाला देकर इस सीन को बदलने की सलाह दी थी। इसी वजह से फिल्म के क्लाइमेक्स को दोबारा शूट किया गया, जिसमें 26 दिन लग गये। फेरबदल करते हुए फिल्म के क्लाइमेक्स में गब्बर को मारने से पहले वहां पुलिस आ जाती है और गब्बर को क़ानून के हवाले कर दिया जाता है। इसी फेरबदल के साथ फिल्म को रिलीज़ किया गया।
सदी का महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन के लिए साल 1975 बेहद लकी साबित हुआ था। इसी साल अमिताभ बच्चन की दो फ़िल्में रिलीज़ हुई थी जो उनके करियर की सबसे हिट फ़िल्में थी। साल की शुरुवात में अमिताभ की फिल्म ‘दीवार’ और अगस्त के महीने में फिल्म ‘शोले’ रिलीज़ हुई थी।
इन दोनों फिल्मों में समानता ये थी कि दोनों ही फिल्मों में आखिर में अमिताभ की मौत हो जाती है। फिल्म ‘दीवार’ में निरुपा राय की गोद में अमिताभ के मरने का सीन हिंदी सिनेमा के इतिहास में सबसे यादगार सीन्स में से एक है।
जब फिल्म ‘शोले’ को 41 वर्ष पूरे हुए थे तब अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म से जुडी कई यादें मीडिया के सामने शेयर की थी। वैसे तो हम और आप सभी ये जानते है कि जब फिल्म ‘शोले’ रिलीज़ हुई थी तो शुरुवाती हफ्ते में कुछ खास नहीं कर पा रही थी।
पहले ही हफ्ते में फिल्म को देखने के लिए दर्शकों की कमी की वजह से फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी और कहानीकार सलीम-जावेद को बड़ी चिंता होने लगी थी। जिसके बाद एक दिन अमिताभ बच्चन के घर बैठकर काफी विचार-विमर्श किया गया और ये फैसला लिया गया था कि फिल्म ‘शोले’ के आखिर में अमिताभ बच्चन के निधन के सीन को फिर से फिल्माया जाएगा।
इसके पहले रिलीज़ हुई फिल्म ‘दीवार’ में भी अमिताभ को स्क्रीन पर मार दिया था और शायद इसीलिए फिल्म ‘शोले’ में अमिताभ का मरना दर्शकों को रास नहीं आ रहा था। सबकुछ तय होने के बाद शूटिंग के सामान को ‘रामनगर’ पहुंचाने की बुकिंग भी कर दी गयी और ये तय हुआ कि रविवार के दिन इस सीन की रिशूटिंग की जायेगी।
आखिरी समय में निर्देशक रमेश सिप्पी ने सभी से कहा कि सोमवार तक इंतज़ार कर लेते है। अगर फिल्म नहीं चली तो इसके बाद रिशूटिंग तो करनी ही है। इसके बाद सोमवार से दर्शकों की जो प्रतिक्रिया फिल्म ‘शोले’ को मिली वो आज भी एक इतिहास है। जो हम और आप सब जानते ही है।
अगर फिल्म नहीं चली होती तो दर्शकों के सामने इस फिल्म का अंत कुछ और बन कर आता। जिसमें अमिताभ को स्क्रीन पर जिन्दा रखा जाता और फिल्म में एक विधवा का किरदार कर रही जया भादुरी के साथ उनका विवाह कर दिया जाता।
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