अनवर हुसैन – अभिनेता अरशद वारसी का गायक भाई, आखिर कैसे हुआ बर्बाद
आज हम आपको गायक अनवर हुसैन के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने बतौर प्लेबैक सिंगर उस दौर में बॉलीवुड में अपने कदम रखे थे जब मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मन्ना डे और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गज गायकों का बॉलीवुड में सिक्का चल रहा था।
ऐसे मोहम्मद रफ़ी से मिलती-जुलती आवाज़ के साथ उस दौर में अपना सिक्का ज़माना कोई आसान काम नहीं था। संगीत को बड़े ध्यान से सुनने वाला ही इनके और रफ़ी साहब की गायकी में फर्क बता सकता था। हम जिस गायक की बात कर रहे है उनका नाम अनवर हुसैन है।
अनवर हुसैन – Anwar Hussain Biography
1 फरवरी 1949 के दिन मुंबई में जन्मे अनवर हुसैन को संगीत उनके पिता की दें थी। उनके पिता आशिक़ हुसैन सितार और हारमोनियम बजाया करते थे और संगीतकार ग़ुलाम हैदर के असिस्टेंट हुआ करते थे। बचपन से ही संगीत में रूचि रखने वाले अनवर का पढाई में मन ना लगता देख उनके पिता ने उन्हें संगीत की शिक्षा देने की सोची और उस्ताद अब्दुल रेहमान खान के पास संगीत की शिक्षा के लिए ले गए। उस्ताद अब्दुल रेहमान खान वो है जिन्होंने महेंद्र कपूर साहब को भी संगीत की शिक्षा दी थी।
शिक्षा के बाद इनकी आवाज़ जब कोई सुनता तो इन्हें कहता कि इनकी आवाज़ मोहम्मद रफ़ी से काफी मिलती-जुलती है। तब क्या था अनवर ने कई कॉन्सर्ट में मोहम्मद रफ़ी के गाये हुए गाने शुरू कर दिये। ऐसे ही कई शादियों और पार्टियों में गाते हुए इनकी आवाज़ संगीतकार कमल राजस्थानी सुन ली और बड़े प्रभावित हुए। फिर क्या था, अनवर साहब को साल 1973 की फिल्म ‘मेरे गरीब नवाज़’ में गाने का मौका मिल गया।
इनका गाया हुआ गीत जब मोहम्मद रफ़ी साहब से सुना तो वो भी हैरान रह गये और बोले कि अगर मेरे बाद कोई मेरी जगह लेगा तो वो ये गायक होगा। लोगों ने इनकी गायकी की प्रसंशा तो की मगर वो कामयाबी नहीं मिल पायी जो इन्हें मिलनी चाहिए थी। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी और अनवर की गायकी फिर से संघर्ष की राह पर चल दी।
साल 1977 में इनकी किस्मत एक बार फिर से चमकी, जब इनकी मुलाकात मशहूर अभिनेता और निर्माता-निर्देशक मेहमूद साहब से हुई। इनकी आवाज़ सुनकर मेहमूद साहब ने इन्हें अपनी फिल्म ‘जनता हवलदार’ में गाने का मौका दिया। अनवर साहब के इस फिल्म में गाये गाने सुपर-डुपर हिट हुए। इस फिल्म के बाद अनवर साहब को बेहद प्रसिद्धि मिली। इन्होंने इसके बाद लता जी से लेकर अलका याग्निक तक के साथ और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से लेकर अन्नू मलिक तक के सुरो पर गीत गाये।
एक समय ऐसा भी आया जब इनकी आवाज़ को बॉलीवुड ने दरकिनार करना शुरू कर दिया गया। ये तब शुरू हुआ जब साल 1980 मोहम्मद रफ़ी साहब की मृत्यु हो गयी। अनवर उस समय खुद को रफ़ी समझते हुए ज्यादा पैसों की मांग करने लगे। जिसकी वजह से उन्हें बहुत से गीतों से हाथ धोना पड़ा।
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जब इन्हें निर्देशक मनमोहन देसाई की फिल्म ‘मर्द’ में अमिताभ बच्चन जी के लिए गाने का मौका मिला तो ज्यादा पैसों की डिमांड करने लगे। जिसके बाद फिल्म के गाने शब्बीर कुमार से गवाए गये। ऐसे ही निर्माता-निर्देशक राज कपूर साहब ने इन्हें अपनी फिल्म प्रेम रोग में गाने का मौका दिया, तब भी अनवर के ज्यादा पैसे मांगने की वजह से फिल्म के गाने गायक सुरेश वाडकर की झोली में चले गये और इस तरह से अनवर साहब फिल्म इंडस्ट्री से गायब होने लग गये।
90 का दशक आते-आते जब कुमार सानू और उदित नारायण जैसे गायकों ने अपने पैर ज़माने शुरू किये तब फ़िल्मी दुनिया ने अनवर साहब से एकदम से किनारा कर लिया। बॉलीवुड में काम मिलना बंद हुआ तो अनवर साहब अमेरिका चले गये और वहां उन्होंने अपना म्यूजिक इंस्टिट्यूट खोलने के बारे में सोचा और लोन लेकर ‘तोहफा’ नामक एक म्यूजिक एल्बम भी बनाया। वो एल्बम नहीं चल पायी और अनवर लोन भी नहीं चूका पाए और इनका मुंबई का घर जब्त कर लिया गया। एक ऐसा दौर भी आया जब इन्हें अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए बियर बार में गाना पड़ा।
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आपको बता दें कि गुमनामी में खो गए अनवर हुसैन फिल्म अभिनेत्री आशा सचदेव और अभिनेता अरशद वारसी के सौतेले भाई है। मगर इनसे अनवर को कभी कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार ये प्रतिभाशाली गायक गुमनामी के अंधेरे में खो गया।
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