Bharat Bhushan – कैसे भाई की सलाह से हुई जिंदगी तबाह

Bharat Bhushan एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता थे जिन्होंने सिनेमा के सुनहरे युग के दौरान भारतीय फिल्म उद्योग में अपना नाम बनाया। 14 जून, 1920 को मेरठ, उत्तर प्रदेश में जन्मे, भारत भूषण ने 1940 के दशक की शुरुआत में अभिनय के क्षेत्र में अपना करियर शुरू किया था, और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को आज भी कई लोग याद करते हैं।

भारत भूषण के पिता रायबहादुर मोतीलाल वकील थे। भारत भूषण के पिता चाहते थे कि उनका बेटा भी उन्हीं की तरह वकील बने। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि भारत भूषण तो एक्टर बनना चाहते थे।

भारत भूषण अपने बहुमुखी अभिनय कौशल के लिए जाने जाते थे, जिसे उन्होंने कई फिल्मों में प्रदर्शित किया। उन्होंने 1941 में फिल्म “चित्रलेखा” से अपने करियर की शुरुआत की, और बाद में “शबनम” (1949), “बैजू बावरा” (1952), “मिर्जा गालिब” (1954), और “बरसात की रात” जैसी कई हिट फिल्मों में दिखाई दिए। ” (1960)। “बैजू बावरा” में उनके प्रदर्शन ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया, जिसने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रमुख अभिनेता के रूप में स्थापित किया।

अभिनय के अलावा, भारत भूषण एक प्रशिक्षित शास्त्रीय गायक भी थे, और उन्होंने अपनी फिल्मों में कई गीतों को अपनी आवाज़ दी। फिल्म “बैजू बावरा” के गीत “ओ दुनिया के रखवाले” की उनकी प्रस्तुति को अभी भी फिल्म उद्योग में भारतीय शास्त्रीय संगीत के बेहतरीन नगीनों में से एक माना जाता है।

BHARAT BHUSHAN BIOGRAPHY

Bharat Bhushan Biography – ऐसे हुई शुरुवात

अलीगढ़ से ग्रैजुएशन करने के बाद Bharat Bhushan मुंबई चले आए। मुंबई आए तो उनके पास मशहूर डायरेक्टर महबूब खान के लिए एक सिफारिशी खत था। उन दिनों महबूब खान ‘अलीबाबा चालीस चोर’ की शूटिंग में बेहद व्यस्त थे। भारत भूषण ने उन्हें वह चिट्ठी दिखाई, मगर उस समय उनके लिए कोई रोल बचा ही नहीं था। यह जानकार भारत बेहद निराश हो गए लेकिन जब उन्हें ये पता चला कि निर्देशक रामेश्वर शर्मा ‘भक्त कबीर’ नामक एक फिल्म बना रहे हैं। तो वो उनके पास चले गए और रामेश्वर ने उन्हें फिल्म में काशी नरेश का किरदार और करीब 60 रुपये की नौकरी भी दे दी। फिल्म ‘भक्त कबीर’ साल 1942 में रिलीज हुई जिसमे उनका पहला रोल था।

ऐसे खुली Bharat Bhushan की किस्मत

अपनी पहली फिल्म ‘भक्त कबीर’ के बाद तो जैसे भारत भूषण की किस्मत का दरवाजा ही खुल गया। इस फिल्म के बाद उन्होंने सावन, जन्माष्टमी, भाईचारा, बैजू बावरा, मिर्जा गालिब जैसी कई फिल्में कीं। ये वो समय था, जब राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे दिग्गज कलाकार इंडस्ट्री में अपनी छाप छोड़ चुके थे, मगर किस्मत भारत भूषण पर मेहरबान थी।

इन फिल्मों की सफलता के बाद भारत भूषण ने मुंबई में न सिर्फ कई बंगले खरीद लिए बल्कि कई महंगी गाड़ियां भी खरीदी। मगर वो कहते है ना बुरा वक़्त सबका आता है, वैसे ही इस उम्दा कलाकार के बुरे वक़्त की शुरुवात तब शुरू हुई जब भारत भूषण के बड़े भाई रमेश ने उन्हें प्रोड्यूसर बनने की सलाह दी। इस पर भारत ने बड़े भाई का कहना माना और कई फिल्में प्रोड्यूस कीं। इनमें से दो फिल्में ‘बसंत बहार’ और ‘बरसात की रात’ सुपरहिट हुईं और भारत भूषण मालामाल हो गए। उनके पास काफी पैसा आ गया। इस तरह पैसा आता देख भारत भूषण के भाई के मन में लालच और बढ़ गया।

लालच में भाई ने इस तरह बना दिया कंगाल

खूब कमाई के बाद Bharat Bhushan के भाई रमेश ने उन्हें और फिल्में बनाने के लिए खूब उकसाया और इतना ही नहीं यह भी सलाह दी कि एक फिल्म में मेरे बेटे को भी हीरो बना देना। भारत भूषण ने अपने भाई की दे हुई यह सलाह मान ली और वैसा ही किया। मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था, भारत भूषण ने इसके बाद जितनी भी फिल्में बनाईं वो सारी की सारी फ़िल्में फ्लॉप होती चली गईं। पैसा इतना लग गया कि भारत कर्ज में डूब गए और एक एक पाई के लिए मोहताज हो गए।

 

Bharat Bhushan Biography

जब बस की कतार में खड़ा होना पड़ा महँगी गाड़ी में घूमने वाले मशहूर कलाकार को

Bharat Bhushan ने जो कुछ भी कमाया था वो सब लूटा दिया और अब उनके पास जो बंगले थे वो भी बिक गए, जितनी महँगी – महँगी गाड़ियां थी वो भी बिक गईं । इतना सब कुछ होने के बावजूद वो फिर भी कहते रहे इन सबके ना होने से मुझे कोई तकलीफ नहीं। मगर ऐसे ही जब एक दिन उन्हें अपनी लायब्रेरी में रखी किताबों को रद्दी के भाव में बेचना पड़ा तो वो एकदम से तड़प उठे। अपनी इस जिंदगी के उन आखिरी दिनों में Bharat Bhushan काफी परेशान हो गए थे। दौलत, इज्जत, शोहरत सबकुछ बर्बाद हो चुका था। कई महंगी गाड़ियों में घूमने वाला एक टॉप मोस्ट हीरो अब लोगों को बस की कतार में खड़ा दिखाई देने लगा था।

न कोई इलाज कराने वाला रहा और ना ही कोई अर्थी उठाने वाला

अपनी जिंदगी के एक किस्से को बताते हुए भारत भूषण ने कहा था कि “मुझे उस वक्त सबसे ज्यादा तकलीफ हुई, जब एक प्रोड्यूसर ने मुझसे कहा कि मेरी फिल्म में एक छोटा सा रोल है जूनियर आर्टिस्ट का, अगर तुम करना चाहते हो तो कर लो। मजबूरी में मैंने वो रोल किया सिर्फ एक वक्त की रोटी के लिए।”

अपने आखरी दिनों में भारत भूषण बहुत ज्यादा बीमार हो गए थे। मगर इस परिस्थिति में न तो उनका कोई इलाज करवाने वाला था और न ही कोई उनकी अर्थी को कांधा देने वाला। इस जालिम फिल्म इंडस्ट्री ने एक बार फिर ये साबित कर दिखाया कि यहां केवल उगते सूरज को सलाम किया जाता है। भारत भूषण ने अपने आखिरी वक्त में कहा था- ”मौत तो सबको आती है, लेकिन जीना सबको नहीं आता। और मुझे तो बिल्कुल नहीं आया।”

और आखिरकार अपनी इस बदहाल जिंदगी से लड़ते लड़ते Bharat Bhushan ने 10 अक्टूबर, 1992 को 72 साल की उम्र हार मान ली और इस दुनिया को छोड़कर चले गए।

 

Bharat Bhushan Biography

Bharat Bhushan के बारे में कुछ रोचक तथ्य – Interesting Facts on Bharat Bhushan

  • भारत भूषण एक प्रशिक्षित शास्त्रीय गायक थे और अभिनेता बनने से पहले शास्त्रीय संगीत शैली में गाते थे।
  • उन्होंने 1941 में फिल्म “चित्रलेखा” से बॉलीवुड में डेब्यू किया।
  • भारत भूषण 1950 और 1960 के दशक में एक प्रमुख अभिनेता थे और उन्होंने “बैजू बावरा,” “मिर्जा गालिब,” और “बरसात की रात” जैसी कई हिट फिल्मों में अभिनय किया।
  • उन्होंने 1954 में “बैजू बावरा” में अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।
  • भारत भूषण अपने शास्त्रीय गायन कौशल के लिए जाने जाते थे और उन्होंने अपनी फिल्मों में “बैजू बावरा” से “ओ दुनिया के रखवाले” सहित कई गीत गाए, जो अभी भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।
  • वह कुछ पंजाबी और गुजराती फिल्मों में भी दिखाई दिए।
  • 1963 में, उन्होंने “कवि” फिल्म का निर्देशन और निर्माण किया, जो प्रसिद्ध हिंदी कवि दुष्यंत कुमार के जीवन पर आधारित थी।
  • भारत भूषण को अपने करियर के बाद के वर्षों में वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उन्हें अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए अपना घर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा।
  • भारत भूषण एक दयालु और उदार व्यक्ति थे जिन्होंने सामाजिक कारणों में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई लोगों की ज़रूरत में मदद की।

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